गाँव-गाँव तक फैल गया है शिक्षा का प्रसार
लेकिन शिक्षा बन बैठी है अब एक कारोबार
बच्चों के स्कूलों से ही तय होता है
अब परिवार का सामाजिक आधार।
पाँच सितारा होटेलों के जैसे
स्कूल की इमारतें की जाती हैं तैयार,
सरकारी सहायता के एवज में
लाभ कमाने के अवसर होते साकार ।
इंटरनेशनल स्कूल का लेबल लगाकर
हल्का करते लोगों की जेबों का भार,
कर नहीं पाते फिर भी बच्चों को
स्वावलंबी ज़िंदगी जीने के लिये तैयार।
इंगलिश मीडियम के चक्कर में
कई घर कर बैठे अपना बंटाधार ।
आधुनिक बनाएँ पर संस्कार ना भुलाएँ
महत्त्वाकांक्षी माता-पिता फँसे बीच मझदार।
उद्योगपति, नेता और व्यापारी
बन बैठे हैं शिक्षा के ठेकेदार,
लक्ष्मी जी के पुजारी चला रहे हैं
सरस्वती जी के ज्ञान मंदिर-द्वार।
होती जा रही है तेज़ी से सब ओर
नये शिक्षा-संस्थानों की भरमार,
फिर भी क्यों गिरता जा रहा है
बुनियादी शिक्षा का आधार ।
आओ सादगी से मनाएँ हम शिक्षा का त्योहार,
ज्ञानोपार्जन ही उद्देश्य हो विद्यालयों का
शिक्षा वितरण का ना हो व्यापार ।
सुख सुविधाओं से शिक्षा को तोलकर
ऐय्याशी की ना करो पुकार
शारीरिक और मानसिक योग्यता बढ़ाकर
उज्ज्वल भविष्य बच्चों का करो तैयार ।
विद्या के मंदिर को ना बनाओ,
हानि-लाभ से जुड़ा कारोबार।
विद्यादान एक सेवा है, न बनाओ इसे व्यवसाय
चलो शिक्षा के क्षेत्र में शुरु करें नया अध्याय।
Picture by Aaron Burden (Unsplash)